फरीदकोट के रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में प्रवचन कार्यक्रम के दौरान श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि ने आहार का महत्त्व बताया। उन्होंने बताया कि आहार शरीर के लिए है न कि शरीर आहार के लिए।
संसार में भूख से उतने व्यक्ति नहीं मरते, जितने अधिक भोजन करने के दुष्परिणामों से मरते हैं। शरीर की तंदुरुस्ती का मूल मंत्र संतुलित और विवेकपूर्ण आहार है जो कभी शरीर में रोग पैदा नहीं होने देता।
उन्होंने कहा कि जिसकी रक्षा ईश्वर करते हैं उसका दुश्मन चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो हो वह कभी मार नहीं सकता। बुद्धिमान हो या मूर्ख, पापी हो या संत सभी का ईश्वर एक ही है, अलग-अलग नहीं है। इसलिए हर मानव को कर्म खूब करना चाहिए पर फल ईश्वर के हाथों में छोड़ देना चाहिए।
विद्या वही है जो संस्कार पैदा करें, उच्च शिक्षा वही है जिसको पाकर मनुष्य विनम्र, परोपकारी, सेवाभावी एवं कार्य में निरंतर तत्पर होउन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा भारतीय संस्कृति के इर्द-गिर्द होनी चाहिए। विदेशी भाषा का बाहुल्य होने से राष्ट्र की बौद्धिक और नैतिक हानियां हो रही हैं। विद्या वही है जो संस्कार पैदा करें। उच्च शिक्षा वही है जिसको पाकर मनुष्य विनम्र, परोपकारी, सेवाभावी एवं कार्य में निरंतर तत्पर हो। क्रोध पाप का मूल है।
क्रोध से बदले की दुर्भावना बढ़ती है। क्रोध एक ऐसा दानव है जो जहां से पैदा होता है वहीं की खुशियों को आग में जला देता है। क्रोधी व्यक्ति की प्रतिष्ठा धीरे-धीरे शुन्य हो जाती है। गुरु भक्ति का महात्म बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर शुद्ध गुरु भक्ति न हो तो शुद्ध चरित्र का गठन नहीं हो सकता। गुरु ऐसा होना चाहिए जो शिष्य को सत्य का ज्ञान दे। उसका आध्यात्मिक कल्याण करें।
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January 03, 2021 at 05:07AM
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