(हेमंत) कोरोना महामारी का असर हर चीज पर पड़ा है। जान-माल के भारी नुकसान के साथ-साथ धार्मिक, सामाजिक रीति रिवाज भी अछूते नहीं रहे। शहर में मुख्यत: 16 जगहों पर रामलीला का भव्य मंचन होता था। सितंबर-अक्टूबर में रामलीला के मंचन की तैयारियां शुरू हो जाती थीं। इस बार कोरोना के कारण रामलीला का मंचन हो पाना मुश्किल है क्योंकि कई लोगों के एक जगह पर इकट्ठा होने से संक्रमण फैल सकता है।
रामलीला का आयोजन करने वालों और कलाकारों का कहना है कि इस बार मंचन न होने से अहसहज महसूस कर रहे हैं। कलाकारों की तो खुराक ही दमदार प्रदर्शन कर दर्शकों की तारीफ हासिल करना होता है। लोग उन्हें असली नाम से कम, किरदारों के नाम से बुलाते ही हैं। रामलीला जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है।
सरकार कोविड-19 की गाइडलाइंस का पालन कर रामलीला मंचन की इजाजत दे। इस संबंध में एडीसी जसबीर सिंह ने कहा कि फिलहाल कोई आवेदन नहीं आया है। आवेदन मिलने पर सरकार की गाइडलाइंस के तहत फैसला लिया जाएगा। दूसरी तरफ रामलीला के बाद दशहरे में कई लोगों का कारोबार चमक जाता है। लोग खूब खरीदारी करते हैं। इस बार एक भी कारीगर को बड़े पुतले का ऑर्डर नहीं मिला।
इस बार शांत रहेंगे दशानन, बड़े पुतलों की गर्जना नहीं होगी
कोरोना के कारण इस बार रामलीलाओं में, मैं हूं लंकापति रावण, चारों दिशाएं मेरे नाम से कांपती हैं... के दमदार डॉयलाग सुनने को नहीं मिलेंगे। श्री महाकाली मंदिर दशहरा कमेटी के प्रधान तरसेम कपूर ने कहा कि प्रशासन को कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए कोई हल निकालना चाहिए। कोरोना के डर से लोग सुविधा केंद्र इजाजत लेने भी नहीं जा रहे।
24 साल से रामलीला कर रहे सुधीर तग्गड़ बोले, जिला प्रशासन को बड़े स्तर पर न सही, छोटे स्तर पर मंचन की इजाजत देनी चाहिए। वहीं, 40 साल से रामलीला करवा रहे भगवान शिव मंदिर रामलीला क्लब, लाडोवाली रोड के डायरेक्टर रवि बमोत्रा बोले, हम 12 दिन की डिजिटल रामलीला भी करवाते थे। तैयारी 3 महीने पहले शुरू होती थी। कोरोना ने धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रोक दिए हैं।
पढ़िए शहर में रामलीला का आयोजन करवाने वालों से लेकर कारोबारियों के जज्बात
प्लानिंग थी पर प्रोग्राम टाल दिया गया
उपकार दशहरा कमेटी आदर्श नगर के प्रधान बृजेश चोपड़ा ने बताया कि 1981 से दशहरा करवाया जा रहा है। अब वे डिजीटल रूप से पर्व मनाते हैं। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले इलेक्ट्रानिक तारों से जोड़े जाते हैं। जो दूर से बटन दबाते ही धू-धू कर जल उठते हैं। इस बार प्लानिंग थी पर कोरोना के कारण प्रोग्राम टाल दिया गया।
रेल हादसे से लगी दशहरे को नजर
श्री महाकाली मंदिर दशहरा कमेटी के प्रधान तरसेम कपूर ने बताया कि 2018 में हुए रेल हादसे से पर्व को नजर लग गई। 2019 में भी इजाजत नहीं मिली और इस बार कोरोना के कारण प्रोग्राम रद्द हो गया। ऐसे त्योहार संस्कृति के प्रतीक हैं। प्रशासन गाइडलाइन जारी करके इसकी इजाजत दे सकता है।
40 साल में पहली बार नहीं होगा मंचन
भगवान शिव मंदिर रामलीला क्लब लाडोवाली रोड के डायरेक्टर रवि बमोत्रा ने बताया कि 40 साल से रामलीला मंचन करवा रहे हैं। कभी ऐसा संकट नहीं देखा। साल 1984 में जब इमरजेंसी लगी थी, तब भी उनके क्लब को प्रशासन से मंचन की इजाजत मिली थी। प्रशासन की इजाजत मिली तो मंचन करेंगे।
रामलीला से 24 साल से जुड़े हैं तग्गड़
रामलीला में 24 साल से रोल कर रहे सुधीर तग्गड़ कहते हैं कि 8वीं में पढ़ते थे तब से रामलीला का हिस्सा हैं। अंगद से शुरुआत की और सुग्रीव, कुंभकरण, हनुमान के बाद अब 13 साल से रावण का किरदार निभा रहे हैं। कोरोना की वजह से धार्मिक कार्यक्रम को एक तरह से नजर लग गई है। पता नहीं कब हालात सामान्य होंगे।
घर में गूंजते हैं विभीषण के डायलॉग
वेद प्रकाश उर्फ बिट्टा 1986 से विभीषण का रोल अदा कर रहे हैं। कहते हैं- असल जिंदगी तो टेल की है लेकिन शौक के लिए रामलीला में रोल निभाता हूं। रामलीला न होने का दुख है। दिल में उत्साह है तो उसे रोका नहीं जा सकता। घर में ही विभीषण के किरदार वाले डायलॉग बोलता रहता हूं। इससे मन शांत हो जाता है।
रामलीला हो या न हो, प्रैक्टिस कर रहे
20 साल से रामलीला में अलग-अलग किरदार निभा रहे राजेश कुमार कहते हैं कि बचपन में रामलीला देखने का चाव था। बाद में भागीदारी का मन बन गया। 9 साल से मेघनाद का किरदार निभा रहा हूं। रामलीला न होने का दुख है। घर में डायलॉग की प्रेक्टिस कर रहे हैं। अब तो लोग कलाकारों को उनके किरदारों के नाम से बुलाते हैं।
हर साल 6-7 लाख की कमाई थी
राजीव कश्यप बोले, कभी ऐसी मंदी नहीं देखी। अमृतसर के सुच्चा सिंह को जालंधर से आतिशबाजी के ऑर्डर मिलते थे लेकिन इस बार एक भी कमेटी ने उनसे संपर्क नहीं किया। हर साल 6 से 7 लाख रुपए का कारोबार होता था। इस बार उम्मीदों पर पानी फिर गया है। बेरोजगार होकर घर में बैठे हैं।
2 महीने में साल का कारोबार होता था
कारीगर संजीवन लाल, चंद्र प्रकाश, मनजीत, सन्नी ने बताया कि दशहरे से 3 महीने पहले ही पुतलों के ऑर्डर आ जाते थे। कारीगर व्यस्त रहते थे। दो महीने में इतना काम हो जाता था कि पूरा साल परिवार पल जाता था। इस साल सभी 7 महीने से खाली बैठे हैं। दुकानें खुली हैं पर सामान लेने वाला कोई नहीं।
एक महीना बचा, एक भी ऑर्डर नहीं
बांसां वाला बाजार में कई साल से कारोबार कर रहे गोल्डी आहूजा ने कहा कि जालंधर ही नहीं, पंजाब के दूसरे शहरों से भी लोग दशहरे से दो महीने पहले पहले ही बांसों की खरीद के लिए आते थे। इस बार कोरोना के कारण अभी तक एक भी ऑर्डर नहीं मिला जबकि दशहरे को एक महीने से भी कम समय बचा है।
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September 30, 2020 at 05:08AM