सनातन धर्म में मोक्षदा एकादशी का बहुत महत्व है, इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। आचार्या इंद्र दास ने बताया कि साल की आखिरी एकादशी इस मांह 25 दिसंबर यानी शुक्रवार को है। एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मोक्षदा एकादशी पर व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को कठिन व्रतों में से एक माना गया है। यह व्रत एकादशी की तिथि से ही आरंभ होकर द्वादशी की तिथि को पारण के बाद ही समाप्त होता है। इस दिन व्रत का संकल्प लेना चाहिए, पूजा स्थल को गंगाजल को छिड़ककर पवित्र कर भगवान विष्णु का गंगाजल स्नान कराएं। भगवान को रोली, चंदन, अक्षत आदि अर्पित कर पीले फूलों से श्रृंगार करने के बाद भोग लगाएं। विष्णु भगवान को तुलसी के पत्ते चढ़ाएं और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें। आचार्य ने बताया कि इस दिन चावल
का सेवन करना वर्जित माना जाता है। यहां तक कि जो लोग एकादशी का व्रत नहीं रखते उन्हें भी चावल नहीं खाने चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता शक्ति, महर्षि मेधा पर बहुत क्रोधित हो गई थीं। महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए अपना शरीर त्याग दिया था। इसके बाद उनका शरीर धरती में समा गया था। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर महर्षि मेधा का शरीर धरती में समाया था, उसी जगह पर चावल और जौ की उत्पत्ति हुई थी। इसी वजह से एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन नहीं किया जाता है। मान्यता है कि एकादशी के दिन जो व्यक्ति चावल या जौ का सेवन करता है, वह महर्षि मेधा के रक्त और मांस का सेवन करता है।
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December 24, 2020 at 05:22AM
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