समराला के रेलवे ट्रैक पर धरने के दौरान हार्ट अटैक से मरे किसान गुरमीत सिंह मांगट के परिवार को अब दो वक़्त की रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं। तीन लड़कियों की शादी कर गुरमीत ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई, दो जुड़वा बेटों की पढ़ाई का खर्च, घर की खातिर कर्ज का बोझ अब उनकी बेसराहा पत्नी के सिर आ पड़ा है।
घर में कमाने वाला कोई नहीं बचा है। ऐसे में दुनिया से चले गए गुरमीत सिंह की पत्नी गुरजिंदर कौर और उनकी बुजुर्ग माता प्रीतम कौर के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी चुनौती बन गया है। कभी 17 एकड़ खेती में हंसी-खुशी गुजारा करने वाले मांगट परिवार को कर्ज ने तोड़ डाला था। गुरमीत सिंह की जमीन तीन बेटियों की पढ़ाई व उनकी शादियां करने में कर्ज की भेंट चढ़ गई थी। थोड़ी बहुत बची जमीन के सहारे उन्होंने दोनों जुड़वा बेटों को विदेश पढ़ने भेज दिया। किसान आंदोलन से पहले गुरमीत अपने ट्रैक्टर को चला उसके सहारे ही परिवार पाल रहे थे। किसान आंदोलन में जान गंवाने के बाद अब परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट चुका है। लड़कियां शादी के बाद अपनी ससुराल में और दोनों बेटे विदेश में है।
मां की मदद को आगे आईं बेटियां
गुरमीत सिंह का परिवार अब चाहे जिस हालत में हो, लेकिन खुशहाल किसान परिवारों में ब्याही गई तीनों बेटियां अब मां की मदद को आगे आई हैं। जिन्होंने घर के लिए करीब 15 लाख के कर्ज की कुछ किश्तें जमा करा अपनी मां को किसी हद तक सुकून दिया है। परिवार में अब सिर्फ गुरमीत सिंह की पत्नी गुरजिंदर कौर अकेली बची हैं। जबकि उनकी मां प्रीतम कौर दूसरे बेटे की बजाए उनके यहां आकर रहने लगी हैं।
बुजुर्ग किसान भाग सिंह के बेटों के सामने कर्जा चुकाने के अलावा बच्चे पढ़ाने की बड़ी चुनौती
शहर के नजदीकी गांव बद्दोवाल गांव के बुजुर्ग किसान भाग सिंंह का परिवार खेतीबाड़ी में बहुत मुनाफा न होने से कर्जदार भी था। ऐसे में ही किसान आंदोलन के दौरान 11 दिसंबर को कुंडली बॉर्डर पर ठंड में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। अब उनके बेटों के सामने खेतीबाड़ी संभालना, सिर चढ़ा कर्जा उतारना व बच्चों को आगे पढ़ाना बड़ी चुनौती है। भविष्य को लेकर चिंतित भाग सिंह के दोनों बेटों गुरप्रीत सिंह व रघबीर सिंह ने बताया कि उनकी माता गुजरने के बाद से 75 बरस की उम्र में भी पिता बस खेतीबाड़ी में ही लगे रहते थे। ऐसे में उनकी मदद से मिलते हौंसले से लगता था कि सिर चढ़ा ढाई लाख का कर्ज भी जल्द उतार देंगे। रही खेती से कमाई की बात तो अपना ट्यूबवैल न होने से सिंचाई का खर्च अलग देना पड़ता है। घर के हालात देख हम दोनों भाइयों के बेटे जसमीत सिंह व प्रदीप सिंह भी 12वीं क्लास तक पढ़ने के बाद खेतीबाड़ी में मदद करने लगे थे। संयुक्त परिवार होने के कारण भाग सिंह का सबसे बड़ा बेटा बीर सिंह भी छोेटे भाइयों के साथ ही रहता है। दोनों छोेटे भाई तो लिहाज में खुलकर नहीं बोेले, मगर घर अफसोस जताने आए गांव के बुजुर्गों ने बेबाकी से बता डाला कि बड़ा बेटा खेतीबाड़ी में मदद नहीं करता, रहने-खाने का खर्च उसका भी है।
मैं अंतिम समय कुंडली बॉर्डर पर पिता के साथ था। मरते दम भी उनको यही फिक्र थी कि मोर्चे पर डटे किसानों की सेवा करनी है। उनकी मौत के बाद किसी सरकारी नुमाइंदे ने मदद तो दूर आकर खबर तक नहीं ली, किसान नेता जरुर दिलासा देने आए। -(जैसा कि भाग सिंह के बेटे रघबीर सिं रवैये ने मेरे दादा भाह ने )
हकीकत में सरकार के गलत कानूनों और अड़ियलग सिंह की जान ली है। उनकी मौत नहीं शहादत हुई है। -(जैसा कि भाग सिंह के पोते जसमीत सिंह ने बताया)
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December 21, 2020 at 06:07AM
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